पाश्चात्य सास्कृतिक हमले एवं विखंडित संयुक्त परिवारो सै फीका पड़ा टेसू झांसी का त्यौहार
Gargachary Times
29 September 2025, 20:49
105 views
Rajasthan
टेसू मेरा यही खड़ा खाने को मांगे दही बड़ा जैसे टेसू झांसी के लोकगीत दशहरे से लेकर शरद पूर्णिमा के बीच गोधूलि बेला में बच्चों के मुख से अनायासही सुनने को मिलजातेहैबालकोके हाथों में टेसू एवं बालिकाओं के सर पर झांझी देख कर अनायासही अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं विशेष रूप से आगरा धौलपुर भरतपुर एवं मथुरा में मनाया जाने वाला यह त्यौहार महाभारत कालीन स्मृतियों से मानव को जोड़ता है
दशहरा के दिन से यह उत्सव शुरू होता है जिस दिन टेसू एवं झांझी को घर लाया जाता है तथा भोग लगाकर झांझी के अंदर एवं टेशूके सामने दीपक जलाकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है इसी दिन शाम को बच्चे एवं बच्चियां टेसू झांझी लेकरपास पड़ोस के घरों में एवं मोहल्ले में जाते हैं तथा टेसू आयो स्टेशन ते रोटी खावे बेसनते जैसे गीत गाकर उपहार की मांग की जाती है गृह स्वामी बच्चों को चॉकलेट टॉफी बिस्कुट पैसे अनाज देकर विदा करता है बच्चे पूरे उत्साह से ऊंच-नीच का भेद समाप्त कर घर-घर जाकर सामाजिक एकता का दीप प्रज्वलित करते हैं जब 5 दिन समाप्त होते हैं तब शरद पूर्णिमा का आगमन होता है इसी दिन शाम को इनकी विदाई का समय होता है तथा रेवड़ी पंजीरी के भोग के साथ टेसू एवं झांसी के साथ फेरे लगाकर उन्हें विसर्जित किया जाता है बुजुर्गों की मा ने तो कुंवारा टेशू विदा नहीं किया जा सकता इसके पीछे महाभारत कालीन घटना का जिक्र किया जाता है
इसके पीछे की कहानी बताते हुए ज्योतिष आचार्य राजकुमार शास्त्री बताते हैं की महाभारत काल में महाबली भीम के समान ही बलशाली एवं योद्धा बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले थे इसी समय इनका मिलन रास्ते में झाझी से हुआ झांसी ने बर्बरीक से प्रभावित होकर उससे शादी की इच्छा जाहिर की किंतु बराबरी को युद्ध में जाना था युद्ध के बाद की कहकर बर्बरीक विधि के विधान के अनुसार युद्ध से पहले ही मृत्यु को प्राप्त कर गया तथा टेशू की झलक नेहीं महाभारत कालीन युद्ध देखा कालांतर में भगवान कृष्ण के आशीर्वाद से कलयुग में वही बर्बरीक खाटू श्याम के नाम से विख्यात है जिसकी विशेष माता है जब टेशू ने भगवान कृष्ण से झांसी से विवाह की बात कही तो भगवान कृष्ण ने प्रति वर्ष झांसी से विवाह होने का टेसू को वचन दिया इसी परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष टेशू का विवाह झांझी से करने के बाद ही उन्हें विसर्जित किया जाता है विबाह कार्य टेसू झाझी के विवाह के बाद ही शुरू होते हैं टेशू के नीचे लगी तीन टांगे उसके तीन शक्तिशाली तीर एवं शिर को धड़ से अलग बनाया जाता है
रोजगार की दृष्टि से देखें झांसी बनाने वाले कुंभकार महीनो पहले से इन्हें बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं इस व्यवसाय से जुड़े लोग बताते हैं कि इस भौतिक युग में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सहारे आदमी ने जीना सीख लिया है तथा तथा सामाजिक जिम्मेदारियों एवं नैतिक दायित्व से दूर होता जा रहा है यही कारण है कि आज का युवा अपनी स्वतंत्रता के लिए एकल परिवार के पक्ष में खड़ा नजर आता हैसंयुक्त परिवारों के विखंडन के बाद एकल परिवारों ने इस त्यौहार में रुचि दिखाना कम कर दिया है जिससे उनकी आमदनी एवं रोजगार भी प्रभावित हुआ है
इस त्यौहार में प्रेम वीरता एवं वचनबद्धता के साथ ही सामाजिक समरसता भी शामिल है जहां जाति धर्म से अलग हटकर बच्चे किसी के घर जा सकते हैं तथा वहां से उपहार ग्रहण कर सकते हैं इस प्रकार के पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं जिन्हें सहेज कर रखना भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति विशेष कर सनातन संस्कृति के सभी योद्धाओं की जिम्मेदारी है